Saturn Transit 2022: शनि का कुंभ राशि में प्रवेश कुछ राशियों के लिए राहत का समय लाएगा और कुछ के लिए जिम्मेदारियों को बढ़ा सकता है। इस समय मकर राशि में शनि के गोचर/Saturn Transit in Capricorn के कारण धनु, मकर और कुंभ पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव चल रहा था और साथ ही मिथुन और तुला राशि के लोगों पर शनि की ढैय्या का प्रभाव था, लेकिन अब शनि के कुंभ राशि में प्रवेश के साथ ही इन राशियों में से कुछ को राहत मिल सकती है और कर्क और वृश्चिक राशियों पर शनि का असर पड़ता दिखाई देगा।
नौ ग्रहों पर शनि का प्रभाव
नव ग्रहों/Navgrahon में शनि की दृष्टि को सबसे अधिक कष्टदायक माना गया है और ऐसे में शनि देव का जब भी किसी एक राशि से दूसरे राशि में परिवर्तन होता है, तो यह समय सभी राशियों को किसी न किसी रूप में प्रभावित करने वाला हो सकता है। शनि जिस भी राशि में गोचरस्थ होते हैं। उस स्थान पर बैठ कर अपनी तीसरी, सातवीं और दशम दृष्टि से अन्य राशियों को तो प्रभावित करते ही हैं, इसके साथ ही साढ़ेसाती और ढैय्या द्वारा भी राशियों को प्रभावित करते हैं। ऐसे में इनका गोचर लगभग सभी के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
अब जब शनि मकर से निकल कर कुंभ में जाएंगे तो उस स्थिति में यह समय मकर, कुंभ, मीन, कर्क वृश्चिक को तो प्रभावित करेगा ही, इसी के साथ मेष और सिंह राशि पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। इसके अलावा जब शनि वक्री होंगे तो पुन: वह राशियां एक बार फिर से प्रभाव में होगी जो पूर्व में शनि से प्रभावित हो रही थी तो शनि का स्वराशि मकर से निकल कर अपनी एक और स्वराशि कुम्भ में आएंगी जो काफी महत्वपूर्ण साबित होगा।
कब होगा शनि का गोचर
शनि का गोचर 29 अप्रैल 2022 कुंभ राशि में होगा। 5 जून 2022 को शनि वक्री अवस्था में होंगे और 12 जुलाई 2022 में पुन: मकर राशि में शनि का वक्री अवस्था में प्रवेश होगा। इसके पश्चात 17 जनवरी 2023 को एक बार फिर से शनिदेव कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे। शनिदेव 5 जून 2022 को कुंभ राशि में गोचर करते हुए वक्री होकर 23 अक्टूबर 2022 को मकर राशि में मार्गी होकर गोचर करेंगे।
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शनि की साढ़ेसाती का विचार
ग्रह गोचर में शनि की साढ़ेसाती/Shani Sade Sati और शनि ढैय्या का विचार मुख्य रूप से किया जाता है। ज्योतिष अनुसार न्याय करता शनिदेव इस समय पर व्यक्ति को उसके कर्मों का फल अवश्य प्रदान करते हैं फिर चाहे हमारे कर्मों का स्वरूप किस भी रूप में हो, वह फल से अछूता नहीं रह सकता है। हमारे द्वारा किया गया छोटे से छोटा शुभ या पाप कर्म इसी फल के रूप में शनि साढ़ेसाती और ढैय्या के समय पर मिलता है।
शनि की साढेसाती को इस प्रकार समझ सकते हैं कि जब भी जन्म चंद्रमा से गोचर का शनि बारहवें, पहले, दूसरे भाव में गोचर कर रहा होता है, तो यह समय शनि साढ़ेसाती का समय होता है। यह समय मानसिक चिंताओं, व्यवधानों और परिश्रम की अधिकता का समय होता है। वृथा की चिंताएं कलह कलेश स्वास्थ्य संबंधी कष्ट इत्यादि बातें जीवन को प्रभावित कर सकती हैं।
कुंभ राशि में शनि के प्रवेश के साथ ही मकर, कुंभ और मीन राशि के लोगों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रभाव रहेगा।
मकर राशि वाले लोगों के लिए साढ़ेसाती अंतिम चरण पर होगी और पांव पर उतरती हुई होगी।
कुंभ राशि वालों के लिए शनि की साढ़े साथी मध्य अवस्था पर होगी और इनके हृदय पर चढ़ती हुई होगी।
मीन राशि वालों के लिए शनि साढ़ेसाती आरंभिक अवस्था में होगी और यह सिर पर चढ़ती हुई होगी।
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शनि ढैय्या विचार
गोचर में शनि जब जन्म चंद्रमा से चतुर्थ या अष्टम भाव स्थान पर गोचर करता है तब शनि की ढैय्या का समय होता है और यह उक्त राशि के लोगों के लिए शनि ढैय्या का समय कहलाता है। यह शनि के ढाई वर्ष तक वाला समय होता है और इसको भी कष्टदायक व कठिन समय माना गया है।
शनि के कुंभ राशि में गोचर/Saturn Transit in Aquarius करने पर कर्क और वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि की ढैय्या का समय आरंभ होगा।
शनि साढ़ेसाती या शनि ढैय्या का प्रभाव सभी लोगों पर एक जैसा नहीं पड़ता। इसके फलों को समझने के लिए कुंडली में शनि की स्थिति को भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। अगर शनि किसी व्यक्ति की कुंडली में त्रिकोण भावों का स्वामी (Lord of trines) हो साथ ही उच्च स्थिति अथवा मित्र क्षेत्री होकर शुभ ग्रह की दृष्टि में है तो शनि की साढ़ेसाती या शनि ढैय्या का अशुभ प्रभाव अपेक्षाकृत कम देखने को मिल सकता है।
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