Puri Jagannath Rath Yatra: आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को आरंभ होती है यह यात्रा। इस वर्ष 1 जुलाई को प्रारंभ होगी यह पवित्र रथ यात्रा। भारत के चार पवित्र धामों में से एक है पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर। 800 वर्ष से अधिक पुराना है भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर। इस मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण भाई बलराम व बहन देवी सुभद्रा संग है विराजमान है भगवान श्रीकृष्ण। रथयात्रा के लिए बलराम, श्रीकृष्ण व देवी सुभद्रा के लिए तैयार किये जाते हैं तीन अलग रथ। रथयात्रा में सबसे आगे बलराम , बीच में देवी सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का होता है रथ। बलराम जी के रथ को तालध्वज कहते हैं जिसका रंग होता है लाल व हरा। देवी सुभद्रा जी के रथ को दर्पदलन या पद्म रथ कहते हैं, जिसका रंग होता है काला, नीला व लाल। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष या गरुड़ध्वज कहते हैं, जिसका रंग होता है लाल व पीला। भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण के रथ की ऊंचाई 45.6 फ़ीट होती है, बलराम के रथ की ऊंचाई 45 फ़ीट और देवी सुभद्रा के रथ की ऊंचाई 44. 6 फ़ीट होती है। नीम की पवित्र लकड़ी से होता है इन रथों का निर्माण व किसी भी की कील या कांटे का नहीं होता है प्रयोग। बसंत पंचमी/Basant Panchami के दिन से शुरू होता है रथों के निर्माण के लिए लकड़ी का चयन। अक्षय तृतीया/Akshay Tritiya से प्रारंभ होता है रथों का निर्माण
ढोल, नगाड़ों, तुरही और शंखध्वनि के बीच भक्तगण खींचते हैं ये रथ
जिन्हे रथ खींचने का अवसर प्राप्त होता है वे माने जाते हैं महा भाग्यवान
पौराणिक मान्यताओं/Hindu Rituals के अनुसार रथ खींचने वाले को होती है मोक्ष की प्राप्ति
जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर पुरी नगर से गुजरते हुए गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं ये रथयात्रा
यहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा करते हैं सात दिनों के लिए विश्राम
गुडिंचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को कहा जाता है आड़प-दर्शन
आषाढ़ मास के दसवें दिन सभी रथ पुनः करते हैं मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान
रथों की वापसी की यह रस्म कहलाती है बहुड़ा यात्रा
जगन्नाथ मंदिर वापस पहुँचने के बाद भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती विराजमान
अगले दिन एकादशी/Ekadashi को खोले जाते हैं मंदिर के कपाट
फिर इन प्रतिमाओं को विधिवत स्नान कराकर मंदिर में किया जाता है पुनः प्रतिष्ठित
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